गैलार्डिया को ब्लैंकेट फ्लावर के नाम से भी जाना जाता है। यह बारहमासी पौधा है , इसकी खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है। गैलार्डिया एस्टरेसिया परिवार का एक पौधा है।
इस फूल का नाम फ्रांस के 18 वी सदी के मजिस्ट्रैट maitre Gaillard de Charentonneau के नाम पर रखा गया है, जो की मजिस्ट्रैट होने के साथ भी बहुत ही काबिल वानस्पातिक शास्त्री थे।
इस पौधे की ऊंचाई 45 -60 से मी होती है। इन पौधो का ज्यादातर उपयोग घर के लॉन और बालकनी को सजाने के लिए किया जाता है।
गैलार्डिया की बहुत सी किस्में ऐसी है, जिन पर सूंदर मेहरून, लाल, पीले और नारंगी रंग के मिश्रण वाले फूल खिलते है। गैलार्डियन फूल की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है: गैलार्डिया एस्टिवेलिस (वॉल्टेर) एच रॉक, गैलार्डिया एमब्लिओडोन ज गेय मैरून ब्लैंकेट फ्लॉवर, गैलार्डिया अरिस्टेटा पर्श, गैलार्डिया अरिज़ोनिका ऐ ग्रे। इन किस्मो का उत्पादन कर किसान भारी मुनाफा कमा सकता है।
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गैलार्डिया की खेती का सही समय फरवरी और मार्च का होता है। इस माह में इस फूल के बीजो की बुवाई की जाती है। बीजो के अंकुरण के लिए सूर्य की रोशनी का उचित तापमान होना आवश्यक है।
इन फूलो को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता नहीं रहती है। 30 -40 के दिन के बाद यह बीज सीडलिंग के लिए तैयार हो जाते है। इन्हे गमलों या किसी अन्य पॉट वगेरा में ट्रांसप्लांट कर सकते है।
बीज लगाने के लगभग तीन महीने बाद इनमे फूल आना शुरू हो जाते है , साथ ही ये पौधे 6 महीने से अधिक फूल देते रहते है। यानी ठंड के आने तक इन पौधो में फूल लगते रहते है।
गैलार्डिया फूल को वैसे किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन क्षारीय, दोमट और अम्लीय मिट्टी को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
बीज की बुवाई के लिए पहले खेत को अच्छे से तैयार कर ले, खेत की अच्छे से गुड़ाई करें। किसानों द्वारा खेत को तैयार करते वक्त गोबर या कम्पोस्ट खाद का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए अच्छे जलनिकास वाली भूमि की आवश्यकता रहती है।
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गैलार्डिया के फूल के लिए उचित तापमान की आवश्यकता रहती है। गैलार्डिया बीज के अच्छे अंकुरण के लिए 21 डिग्री तापमान की जरुरत रहती है। फूल की अच्छी ग्रोथ के लिए 20 -30 डिग्री के बीच के तापमान की आवश्यकता रहती है।
यह पौधे ज्यादा गर्मी के तापमान को सहन कर लेते है , लेकिन सर्दियों में 10 डिग्री टेम्परेचर से कम का तापमान इस पौधे की बढ़ोत्तरी पर बाधा डाल सकता है।
गैलार्डिया के फूल को ज्यादा देखभाल की जरुरत नहीं रहती है। बुवाई के बाद इसमें सिंचाई भी बहुत ही कम मात्रा में की जाती है। गैलार्डिया का पौधा सूखा सहनशील है, इसीलिए इसमें कम पानी की जरुरत पड़ती है।
वसंत और गर्मियों में पौधे पर फूल आने लग जाते है , उस वक्त इस पौधे को पानी की जरुरत होती है। सर्दियों में पौधे की सिंचाई की मात्रा कम कर दी जाती है।
पौधे की अधिक उपज के लिए अन्य रासायनिक खाद की आवश्यकता नहीं रहती। खेत को तैयार करते समय कम्पोस्ट खाद का उपयोग करें, वो फसल और भूमि दोनों के लिए बेहतर होता है।
साथ ही इस पौधे में कीट और रोग लगने की बहुत ही कम संभावनाएं रहती है। लेकिन गैलार्डिया फूल में रुट रॉट की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है।
इस रोग से पौधे की जड़े सड़ने लगती है, यह ज्यादा पानी के प्रभाव से भी हो सकता है, इसीलिए इसकी खेती के लिए जल निकासी का प्रबंध होना आवश्यक है। साथ ही भूमि सूखी होनी चाहिए उसमे ज्यादा नमी न हो , ज्यादा नमी भी पौधे को नुक्सान पहुँचाती है।
गैलार्डिया फूल में 6 महीने तक फूल खिलते है। फूल खिलने के बाद इसके पेड़ सूख और मुरझा जाते है। इन फूलो की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए इसके तनो को काट दिया जाता है।
साथ ही बढ़ते मौसम में फूलो को डेडहेड करते रहना चाहिए ताकि यह फूलो को निरंतर खिलने के लिए बढ़ावा दे सके। गैलार्डिया फ्लॉवर की प्रूनिंग का काम पतझड़ के मौसम में किया जाता है, ऐसा करने से पौधे सूंदर और स्वस्थ बने रहते है।
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पिकता और लोरेंजिया ये भी गैलार्डिया फूल की किस्में है। गैलार्डिया पौधे में बड़े आयकर के फूल लगते है। बुवाई के लिए इसमें 300 ग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता रहती है।
गैलार्डिया फूल की खेती के लिए , खेत की अच्छी से जुताई कर ले। मिट्टी के भुरभुरा होने पर बीज की बुवाई करें। बुवाई करते समय फॉस्फोरस और पोटास को भी खेत में दे देना चाहिए, इससे भूमि की उर्वरकता बनी रहती है।
गैलार्डिया की खहेति करने के लिए, बीजो को बोने के लिए अलग से नर्सरी तैयार की जाती है। यह नर्सरी ऊंची और समतल जगहों पर बनाई जाती है, एक एकड़ खेत में लगभग चार क्यारियां बनाई जाती है 3 फ़ीट चौड़ी और 10 फ़ीट लम्बी होती है। बुवाई करने से पहले बीजउपचार कर लेना चाहिए।
किसान भाई फूलगोभी की उन्नत किस्मों के माध्यम से किसी भी सीजन में बेहतरीन उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। किसानों को इसकी खेती करने पर काफी अच्छी-खासी पैदावार अर्जित प्राप्त हो सकती है।
बतादें, कि अच्छे उत्पादन के लिए जैविक खाद और खेत से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। फूलगोभी की खेती के माध्यम से किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
शायद आपको जानकारी हो कि फूलगोभी की खेती किसान किसी भी सीजन में कर सकते हैं। साथ ही, लोगों के द्वारा फूल गोभी का उपयोग सब्जी, सूप एवं अचार इत्यादि तैयार करने के लिए किया जाता है।
क्योंकि इस सब्जी के अंदर विटामिन-बी की मात्रा के साथ प्रोटीन भी बाकी सब्जियों से कई गुना ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसी वजह से बाजार के अंदर इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।
वर्तमान में दिल्ली में फूल गोभी की कीमत 60 से 100 रुपये प्रति किलो तक है। साथ ही, फूलगोभी की खेती के लिए ठंडी एवं आर्द्र जलवायु जरूरी होती है।
आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि फूलगोभी की फसल में रोग लगने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। इसके संरक्षण के लिए बीजों की बुवाई से पूर्व ही कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित फफूंदनाशक से शोधन अवश्य करें।
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वहीं, फूल गोभी की अन्य अगेती किस्मों में - पूसा दिपाली, अर्ली कुवारी, अर्ली पटना, पन्त गोभी- 2, पन्त गोभी- 3, पूसा कार्तिक, पूसा अर्ली सेन्थेटिक, पटना अगेती, सेलेक्सन 327 और सेलेक्सन 328 आदि शम्मिलित हैं।
इसके अतिरिक्त फूलगोभी की पछेती किस्मों में- पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, पूसा स्नोबॉल-16 आदि शम्मिलित हैं। फूलगोभी की मध्यम किस्मों में - पूसा सिंथेटिक, पंत सुभ्रा, पूसा सुभ्रा, पूसा अगहनी उयर पूसा स्नोबॉल आदि शम्मिलित हैं।
गोभी वर्गीय सब्जियों में फूलगोभी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी खेती विशेष तोर पर श्वेत, अविकसित व गठे हुए पुष्प पुंज की पैदावार के लिए की जाती है।
इसका इस्तेमाल सलाद, बिरियानी, पकौडा, सब्जी, सूप और अचार इत्यादि निर्मित करने में किया जाता है। साथ ही, यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में बेहद फायदेमंद है। यह प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ का भी बेहतरीन माध्यम है।
फूलगोभी की सफल खेती के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी होती है। दरअसल, अधिक ठंड और पाला का प्रकोप होने से फूलों को काफी ज्यादा नुकसान होता है।
शाकीय वृद्धि के दौरान तापमान अनुकूल से कम रहने पर फूलों का आकार छोटा हो जाता है। एक शानदार फसल के लिए 15-20 डिग्री तापमान सबसे अच्छा होता है।
फूलगोभी को उगाए जाने के आधार पर फूलगोभी को विभिन्न वर्गो में विभाजित किया गया है। इसकी स्थानीय तथा उन्नत दोनों तरह की किस्में उगाई जाती हैं। इन किस्मों पर तापमान और प्रकाश समयावधि का बड़ा असर पड़ता है।
अत: इसकी उत्तम किस्मों का चयन और उपयुक्त समय पर बुआई करना बेहद जरूरी है। अगर अगेती किस्म को विलंब से और पिछेती किस्म को शीघ्र उगाया जाता है तो दोनों में शाकीय वृद्धि ज्यादा हो जाती है।
नतीजतन, फूल छोटा हो जाता है और फूल देरी से लगते हैं। इस आधार पर फूलगोभी को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है – पहला –अगेती, दूसरा-मध्यम एवं तीसरा-पिछेती।
फूलगोभी की खेती ऐसे तो हर तरह की जमीन में की जा सकती। लेकिन, एक बेहतर जल निकासी वाली दोमट या बलुई दोमट जमीन जिसमें जीवांश की भरपूर मात्रा उपलब्ध हो, इसके लिए बेहद उपयुक्त मानी जाती है।
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इसकी खेती के लिए बेहतर ढ़ंग से खेत को तैयार करना चाहिए। इसके लिए खेत को ३-४ जुताई करके पाटा मारकर एकसार कर लेना चाहिए।
फूलगोभी की उत्तम पैदावार हांसिल करने के लिए खेत के अंदर पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना बेहद अनिवार्य है। खेत में 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट रोपाई के 3-4 सप्ताह पहले बेहतर ढ़ंग से मिला देनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए।
नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी जुताई या प्रतिरोपण से पूर्व खेत में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। वहीं, शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में 30 और 45 दिन बाद उपरिवेशन के तोर पर देना चाहिए।
फूलगोभी की अगेती किस्मों का बीज डॉ 600-700 ग्राम और मध्यम एवं पिछेती किस्मों का बीज दर 350-400 ग्राम प्रति हेक्टेयर है।
फूलगोभी की अगेती किस्मों की बुवाई अगस्त के अंतिम सप्ताह से 15 सितंबर तक कर देनी चाहिए। वहीं, मध्यम और पिछेती प्रजातियों की बुवाई सितंबर के बीच से पूरे अक्टूबर तक कर देनी चाहिए।
फूलगोभी के बीज सीधे खेत में नहीं बोये जाते हैं। अत: बीज को पहले पौधशाला में बुआई करके पौधा तैयार किया जाता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्रतिरोपण के लिए लगभग 75-100 वर्ग मीटर में पौध उगाना पर्याप्त होता है।
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पौधों को खेत में प्रतिरोपण करने के पहले एक ग्राम स्टेप्टोसाइक्लिन का 8 लीटर पानी में घोलकर 30 मिनट तक डुबाकर उपचारित कर लें। उपचारित पौधे की खेत में लगाना चाहिए।
अगेती फूलगोभी के पौधों कि वृद्धि अधिक नहीं होती है। अत: इसका रोपण कतार से कतार 40 सेंमी. पौधे से पौधे 30 सेंमी. की दूरी पर करना चाहिए।
परंतु, मध्यम एवं पिछेती किस्मों में कतार से कतार की दूरी 45-60 सेंमी. और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंमी. तक रखनी चाहिए।
पौधों की अच्छी बढ़ोतरी के लिए मृदा में पर्याप्त मात्रा में नमी का होना बेहद जरूरी है। सितंबर माह के पश्चात 10 या 15 दिनों के अंतराल पर जरूरत के अनुरूप सिंचाई करते रहना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में 5 से 7 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
फूलगोभी में फूल तैयार होने तक दो-तीन निकाई-गुड़ाई से खरपतवार का नियन्त्रण हो जाती है, परन्तु व्यवसाय के रूप में खेती के लिए खरपतवारनाशी दवा स्टाम्प 3.0 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव रोपण के पहले काफी लाभदायक होता है।
पौधों कि जड़ों के समुचित विकास हेतु निकाई-गुड़ाई अत्यंत आवश्यक है। एस क्रिया से जड़ों के आस-पास कि मिटटी ढीली हो जाती है और हवा का आवागमन अच्छी तरह से होता है जिसका अनुकूल प्रभाव उपज पर पड़ता है। वर्षा ऋतु में यदि जड़ों के पास से मिटटी हट गयी हो तो चारों तरफ से पौधों में मिटटी चढ़ा देना चाहिए।
बिहार में राज्य सरकार की तरफ से कंदीय फूलों की खेती करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत तक सबसिडी प्रदान की जा रही है। योजना का फायदा उठाने के लिए कृषक भाई आधिकारिक साइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।
बिहार सरकार की ओर से किसानों को फूलों का उत्पादन करने के लिए निरंतर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने फिलहाल एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत कंदीय फूल की खेती करने के लिए किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया है।
योजना का फायदा उठाने के लिए किसान आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।
सब्सिडी का फायदा उठाने के लिए किसान आज ही आधिकारिक वेबसाइट horticulture.bihar.gov.in पर जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त वह अपने निकटतम उद्यान कार्यालय में सम्पर्क कर सकते हैं।
योजना के अंतर्गत फायदा लेने के लिए किसानों को अपना आधार कार्ड, बैंक पासबुक की प्रति, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, फोन आदि अपने पास जरूर रखने होंगे।
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बाजार में ये फूल अच्छी-खासी कीमत में बिकते हैं। किसान भाई कंदीय फूलों की खेती कर कम समय में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। जानिए किन फूलों को कंदीय फूल कहा जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऑक्जेलिक, हायसिन्थ, ट्यूलिप, लिली, नर्गिसफ्रिजिआ, डेफोडिल, आइरिस, इश्किया, आरनिथोगेलम को कंदीय फूल कहा जाता है।
हॉलीहॉक पौधा एक प्रकार का फूल है जिसका वैज्ञानिक नाम alcea rosea है। यह फूल लगभग 5 -6 फुट ऊँचा होता है। यह फूल रंग बिरंगी फूलो और अपनी मनमोहक शक्ति के लिए प्रसिद्ध है। इस फूल का उपयोग ज्यादातर वानस्पतिक बाग़, उद्यानों और पेयजल की सुंदरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
हॉलीहॉक यूरोप और एशिया का सूंदर पुष्पी पौधा है , इसे मल्लिका और गुलखैरा के नाम से भी जाना जाता है। इस फूल के पत्ते सफ़ेद और हरे रंग के होते है , जो की हृदय के आकार के होते है। इन फूलो में बहुत से औषिधीय गुण भी पाए जाते है। हॉलीहॉक एक बहुत ही महत्पूर्ण पौधा है , जिसका उपयोग बगीचे की सुंदरता बढ़ाने के लिए भी आमतौर पर किया जाता है।
हॉलीहॉक की खेती ज्यादातर बगीचों और बालकनियों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए करते है। इसमें सबसे पहले बीज की जाँच कर ले ,सबसे अच्छे बीज का चयन करें। हॉलीहॉक की अच्छी खेती के लिए रेतीली मिटटी की आवश्यकता रहती है। उसके बाद बीजो को अच्छे से समान दूरी पर बो दे , उसके बाद बीज को मिटटी से अच्छे तरीके से ढक दे।
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यह फूल ज्यादातर शुष्क और उष्णकटिबंधीय जगहों पर उगाया जाता है। हॉलीहॉक के पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए सूर्य की उचित रोशनी की भी आवश्यकता पड़ती है।
हॉलीहॉक फूल कई प्रकार का होता है और इन सब की अपनी अलग-अलग खासियत भी है। यह फूल रंगो के आधार पर भी अलग पाए जाते है। हॉलीहॉक फूल के मुख्य प्रकार ये है : मल्टीकलर हॉलीहॉक, मेसेंजर हॉलीहॉक, एलिगेंस हॉलीहॉक और अलस्विच हॉलीहॉक यह फूल दिखने में बहुत ही सूंदर और आकर्षक होते है।
हॉलीहॉक का पौधा दुनिया भर में पाया जाता है, क्योंकि यह पौधा अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। यह फूल ज्यादातर सूखे इलाकों में पाया जाता है। यह एक वानस्पतिक प्रजाति है, जिसे गुड़हल के नाम से भी जाना जाता है। इस फूल का उत्पादन भारत के कई राज्यों में किया जाता है जैसे : झारखण्ड, ओड़िसा और छत्तीसगढ़। लेकिन यह फूल ज्यादातर पूर्वी भारत में पाया जाता है। हॉलीहॉक का पौधा बड़ी पत्तियों और फूलों के साथ काफी ऊँचा भी होता है।
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बुवाई के बाद पौधे की अच्छे से देखभाल की जाती है। इसमें समय पर पानी और खाद भी दिया जाता है, ताकि पौधे की अच्छे से वृद्धि की जा सके। बुवाई से पहले और बुवाई के बाद भी मिट्टी में उचित खाद का प्रयोग करना चाहिए। पौधे को नियमित पानी दे, ताकि भूमि की उर्वरकता बनी रहे। पौधे की उचित देखभाल से पौधा लम्बे समय तक सूंदर फूल प्रदान करेगा। समय पर पौधे में नराई का काम भी किया जाना चाहिए, ताकि पौधा का अच्छे से विकास हो सके।
हॉलीहॉक के पौधे का उपयोग बहुत से रोगों में भी किया जाता है। हॉलीहॉक के पौधे के बहुत से औषिधीय गुण भी है। इसका इस्तेमाल हम चक्कर आने पर , हृदय रोग होने पर साथ ही कफ जैसे रोगों से छुटकारा पाने के लिए भी किया जाता है।
1- हॉलीहॉक के पौधे का इस्तेमाल रूखी त्वचा के लिए भी किया जाता है। साथ ही इसे त्वचा के उपचार के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। यह एक अमूल्य पौधा है जिसका उपयोग बहुत सी चीजों में किया जाता है।
2 -हॉलीहॉक के पौधे में ग्लूकोसाइड नामक तत्व भी पाया जाता है, जो शरीर के अंदर रक्तचाप को संतुलित बनाये रखने में मदद करता है। साथ ही यह शरीर के अंदर अनीमिया की कमी को भी दूर करने में सहायक सिद्ध होता है।
सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है।
सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है।
सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।
सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।
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किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है।
केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है।
केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है।
सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है।
किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है।
सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है।
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ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है।
सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है।
एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है।
अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।
आजकल भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने बाग बगीचों में अलग अलग तरह के फूलों को उगाकर मानसिक सुकून हांसिल कर सकते हैं। आज हम आपको मौसमिक आधार पर कुछ विशेष फूलों की जानकारी प्रदान करेंगे।
आप इन पौधों को गमलों, बरामदों, टोकरियों और खिड़कियों में बड़ी ही आसानी से उगा सकते हैं। सालाना या मौसमी फूल वाले पौधे उन्हें कहा जाता है, जो अपना जीवन चक्र एक वर्षा या एक मौसम में पूर्ण कर लेते हैं ।
मौसमी फूलों के पौधे अलग अलग तरह से तैयार किये जाते हैं। दरअसल, कुछ फूलों के पौधों को पहले पौधशाला में तैयार करने के पश्चात क्यारियों में लगायें।
इसके उपरांत विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के बीज सीधे क्यारियों में लगा दिये जाते हैं। इनके बीज काफी छोटे होते हैं। इनकी सही तरीके से बेहतर देखभाल करके पौध को तैयार कर लिया जाता है।
किसान भाई इस तरह की जमीन का चुनाव करें, जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश हों, सिंचाई और जल निकासी की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हों। फूलों की खेती के लिये रेतीली दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
जमीन को तकरीबन 30 सेमी की गहराई तक खोदें, गोबर की खाद, उर्वरक, आकार के अनुरूप मिश्रित करें। (1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में 25-30 क्विंटल गोबर की खाद) वर्षा ऋतु में पौधशाला की देखभाल अन्य मौसमों की अपेक्षा में ज्यादा करें।
क्यारियों को आकार के मुताबिक एकसार करके 5 सेमी के फासले पर गहरी पंक्तियाँ निर्मित करके उनमें 1 सेमी की दूरी पर बीज रोपण करें।
बीज बुवाई के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखें कि बीज एक सेमी से ज्यादा गहरा ना हो पाए। इसके बाद में इसको हल्की परत से ढकें। सुबह शाम हजारे से पानी दें। जब पौध तकरीबन 15 सेमी ऊँची हो जाए तब रोपाई करें।
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क्यारियों में रोपाई एक निश्चित दूरी पर ही करें। सबसे आगे बौने पौधे 30 सेमी तक ऊँचाई वाले 15-30 सेमी दूरी पर, मध्यम ऊँचाई 30 से 75 सेमी वाले पौधे, 35 सेमी से 45 सेमी तथा लंबे 75 सेमी से ज्यादा ऊँचाई रखने वाले पौधे 45 सेमी से 50 सेमी के फासले पर रोपाई करें।
सिंचाई: वर्षा ऋतु में सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं पड़ती है। अगर काफी वक्त तक वर्षा ना हो तो उस स्थिति में जरूरत के अनुरूप सिंचाई करें। शरद ऋतु में 7-10 दिन एवं ग्रीष्म ऋतु में 4-5 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार जमीन से नमी और पोषक तत्व ग्रहण करते रहते हैं, जिसके चलते पौधों के विकास तथा बढ़ोतरी दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। अर्थात उनकी रोकथाम के लिए खुरपी की मदद से घास-फूस निकालते रहें।
खाद एवं उर्वरक: पोषक तत्वों की उचित मात्रा, भूमि, जलवायु और पौधों की प्रजाति पर निर्भर करता है। आम तौर पर यूरिया- 100 किलोग्राम, सिंगल सुपरफॉस्फेट 200 किलो ग्राम एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 75 किलोग्राम का मिश्रण बनाकर 10 किलोग्राम प्रति 1000 वर्ग मीटर की दर से जमीन में मिला दें। उर्वरक देने के दौरान ख्याल रखें कि जमीन में पर्याप्त नमी हो।
तरल खाद: मौसमी फूलों की सही और बेहतर बढ़वार फूलों के बेहतरीन उत्पादन के लिये तरल खाद अत्यंत उपयोगी मानी गयी है। गोबर की खाद और पानी का मिश्रण उसमें थोड़ी मात्रा में नाइट्रोजन वाला उर्वरक मिलाकर देने से फायदा होता है ।
इन पौधों के बीजों की अप्रैल-मई में पौधशाला में बोवाई करें और जून-जुलाई में इसकी पौध को क्यारियों या गमलों में लगायें। मुख्य रूप से डहेलिया, वॉलसम, जीनिया, वरबीना आदि के पौध रोपित करें ।
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इन पौधों के बीज जनवरी में बोयें तथा फरवरी में लगायें इन पर अप्रैल से जून तक फूल रहते हैं। मुख्य रूप से जीनिया, कोचिया, ग्रोमफ्रीना, एस्टर, गैलार्डिया, वार्षिक गुलदाउदी लगायें।
बीज के लिए फल चुनते समय फूल का आकार, फूल का रंग, फूल की सेहत अच्छी ही चुननी चाहिये। जब फूल पक कर मुरझा जायें तब उसे सावधानी से काट कर धूप में सुखा लें फिर सावधानी से मलकर उनके बीज निकाल लें और फिर उन्हें शीशे के बर्तन या पॉलीथिन की थैली में बंद कर लें।
बाड़ के लिये पौधे: गुलदाउदी, गेंदा।
गमले में लगाने हेतु: गेंदा, कार्नेशन, वरवीना, जीनिया, पैंजी आदि ।
पट्टी, सड़क या रास्ते पर लगाने हेतु: पिटुनिया, डहेलिया, केंडी टफ्ट आदि ।
सुगंध के लिये पौधे: स्वीट पी, स्वीट सुल्तान, पिटुनिया, स्टॉक, वरबीना, बॉल फ्लॉक्स ।
क्यारियों में लगाने हेतु: एस्टर, वरवीना, फ्लॉस्क, सालविया, पैंजी, स्वीट विलयम, जीनिया।
शैल उद्यानों में लगाने हेतु: अजरेटम, लाइनेरिया, वरबीना, डाइमार्फोतिका, स्वीट एलाइसम आदि ।
लटकाने वाली टोकरियों में लगाने हेतु: स्वीट, लाइसम, वरवीना, पिटुनिया, नस्टरशियम, पोर्तुलाका, टोरोन्सिया।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अधिकांश आबादी कृषि या कृषि से जुड़े कार्यों से आजीविका चलाती है। वर्तमान में भारत के कई पढ़े-लिखे शिक्षित लोग नौकरी को छोड़कर कृषि में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
साथ ही, सफलता भी हांसिल कर रहे हैं। इसी कड़ी में फूलों की खेती करके श्रीकांत बोलापल्ली ने एक छोटी स्तर से शुरुआत करके आज वार्षिक करोड़ों की आय का मुकाम हांसिल किया है।
उन्होंने फूलों की खेती करने से पूर्व आधुनिक कृषि तकनीकों के विषय में सही से जानकारी ग्रहण की और इसका अनुसरण करके इसको कृषि में लागू किया। आज के समय में फूलों की खेती और इसके व्यवसाय में इनका काफी जाना-माना नाम है।
अपनी युवावस्था में आज से तकरीबन 22 वर्ष पूर्व तेलंगाना के एक छोटे से शहर से आने वाले श्रीकांत बोलापल्ली का सपना था, कि वह अपनी जमीन पर खेती करें।
लेकिन, गरीबी के चलते और घर-परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह जमीन खरीद सकें। समय के चलते हालात बिगड़ने पर श्रीकांत ने अपने शहर ‘निजामाबाद’ को छोड़ दिया और 1995 में बेंगलुरु करियर बनाने आ गये।
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उस दौरान डोड्डाबल्लापुरा क्षेत्र में श्रीकांत को फूलों की खेती से जुड़ी एक कंपनी में बतौर पर्यवेक्षक के रूप में काम मिला। इस समय श्रीकांत की सैलरी 1000 रुपये महीना हुआ करती थी।
2 सालों तक श्रीकांत ने इसी कंपनी में कार्य किया और फूलों की खेती करने के लिए वैज्ञानिक खेती के विषय में जानकारी अर्जित की है।
उन्होंने यहां नौकरी करके 24000 हजार रुपये जमा किए और बैंगलुरु में ही फूलों का छोटा सा व्यवसाय शुरू किया। श्रीकांत ने विभिन्न कंपनियों और किसानों से संपर्क करके फूलों का व्यापार करना शुरू कर दिया।
प्रारंभिक समय में वह अकेले ही फूलों को इकट्ठा किया करते थे और इनकी पैकिंग करके पार्सल किया करते थे। धीरे-धीरे मांग में वृद्धि हुई और उन्होंने दो कर्मचारियों को अपने साथ में जोड़ लिया।
बतादें, कि श्रीकांत ने काफी लंबे समय तक फूलों का व्यवसाय करने के बाद 2012 में श्रीकांत ने डोड्डाबल्लापुरा में ही 10 एकड़ भूमि खरीदी। किसान श्रीकांत ने इस भूमि पर आधुनिक तकनीकों के साथ फूलों की खेती करनी चालू की है।
श्रीकांत आज 30 एकड़ भूमि पर फूलों की खेती कर रहे हैं। फूलों की खेती करके उन्होंने पिछले वर्षों में 9 करोड़ रुपये का मुनाफा प्राप्त किया है।
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उन्होंने इस वर्ष 12 करोड़ रुपये का लाभ कमाने का आंकलन किया है। 20 सालों में श्रीकांत के साथ कार्य करने वाले कर्मचारियों की तादात 40 हो चुकी है।
किसान श्रीकांत ने पिछले चार वर्षों में आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाया और अपने खेतों में इन तकनीकों का उपयोग करने लगे।
श्रीकांत ने अपने खेत में फूलों की खेती के लिए ग्रीन हाउस तैयार किया है। इस ग्रीन हाउस में उन्होंने उच्च कृषि तकनीकों को अपनाया और फूलों को अनुकूल वातावरण प्रदान किया।
इस ग्रीन हाउस में श्रीकांत ने सिंचाई, उवर्रक का प्रयोग, घुलनशील उवर्रक, मिट्टी, कीटनाशक उपयोग और फूलों के विकास के नियमों का ख्याल रखा है।
उन्होंने इस ग्रीन हाउस में फूलों के लिए सूर्य की रौशनी की भी व्यवस्था की हुई है। इसके अलावा उन्होंने कीट जाल भी बनाकर रखे हैं, ताकि कीटनाशक का कम से कम इस्तेमाल किया जा सके।
श्रीकांत ने आधुनिक तकनीक को अपनाते हुए हवा की भी व्यवस्था की हुई है, जिससे फूलों को समुचित नमी प्राप्त हो सके।
फूलगोभी की अगेती किस्म के सापेक्ष पछेती किस्मों में खाद एवं उर्वरकों की ज्यादा आवश्यकता होती है। सामान्यतया गोभी के लिए करीब 300 कुंतल सड़ी हुई गोबर की खाद के अलावा 120 किलोग्राम नत्रजन एवं 60—60 किलोग्राम फास्फोरस एवं पोटाश आखिरी जाते में मिला देनी चाहिए। इसकी अगेती किस्मों में कीट एवं रोगों का प्रभाव ज्यादा रहता है लिहाजा बचाव का काम नर्सरी से ही शुरू कर देना चाहिए।
फूलगोभी की पौध तैयार करते समय की सावाधानी फसल को आखिरी तक काफी हद तक स्वस्थ रखती है। ढ़ाई बाई एक मीटर की सात क्यारियों में करीब 200 ग्राम बीज बोया जा सकता है। क्यारियों को बैड के रूप मेें करीब 15 सेण्टीमीटर उठाकर बनाएं। गोबर की खाद हर क्यारी में पर्याप्त हो। बीज बोने के बाद भी छलने से छानकर गोबर की खाद का बुरकाव करें। इसके बाद हजारे से क्यारियों में सिंचाई करते रहें। अगेती किस्मों में पौधे और पंक्ति की दूरी 45 एवं पछती किस्मों में 60 सेण्टीमीटर रखें। अगेती किस्मों में पांच छह दिन बाद एवं पछेती किस्मों में 12 से 15 दिन बाद सिंचाई करें। गोभी में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई सतत रूप से जारी रहनी चाहिएं ।
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रोगों में पौध गलन एवं डैम्पिंग आफ रोग एक प्रकार की फफूंद से होता है। इसके कारण पौधों को अंकुरित होने के साथ ही हानि होती है। बचाव हेतु दो से तीन ग्राम कैप्टान से एक किलाग्राम बीज को उपचारित करके बोएंं। भूमिशोधन हेतु फारमेल्डीहाइड 160ml को ढाई लीटर पानी में घोलकर जमीन पर छिड़काव करें। काला सड़न रोग के प्रभाव से प्रारंभ में पत्तियों पर वी आकार की आकृति बनती है जो बाद में काली पड़ जाती है। बचाव हेतु नर्सरी डालाते समय बीज को 10 प्रतिशत ब्लीचिंग पाउडर के घोल अथवा Streptocycline से उपचारित करके बोना चाहिए। गोभी में गिडार या सूंडी नियंत्रण हेतु पांच प्रतिशत मैलाथियान धूल का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए।सूरजमुखी किसानों के लिए बहुत ही मूल्यवान फसल मानी जाती हैं। सूरजमुखी की फसल से जुड़े विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां जिसको जानकर आप सूरजमुखी के बहुत सारे फायदे से जागरूक हो जाएंगे। किसानों के अनुसार सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है। किसानों का यह कहना है कि सूरजमुखी की फसल बेहतर मुनाफा देने वाली फसल है। जिसको आम भाषा में नकदी फसल भी कहा जाता है। प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार सूरजमुखी की पहली खेती उत्तराखंड के पंतनगर में हुई थी जिसका समय लगभग 1969 था। किसान सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी और जायद इन तीनों मौसमों में करते हैं। आइये जानते हैं सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ । कुछ सालों के अनुमान से यह कहा जा सकता है, कि सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। तथा किसान इसकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि भी कर रहे हैं जिससे वह उचित मूल्य प्राप्त कर सकें।
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सूरजमुखी की खेती के लिए अच्छी जलवायु और भूमि की बहुत ही आवश्यकता होती है। सूरजमुखी की फसलें खरीफ रबी जायद तीनों मौसमों में इसकी खेती की जाती है। सूरजमुखी की खेती के लिए शुष्क जलवायु की बहुत ही आवश्यकता होती है। सूरजमुखी की खेती आप किसी भी भूमि में कर सकते हैं। सूरजमुखी की खेती के लिए अम्लीय एवम क्षारीय भूमि उचित नहीं होती खेती के लिए। वैसे तो आप किसी भी मिट्टी में सूरजमुखी की खेती कर सकते हैं। लेकिन सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे उचित दोमट मिट्टी होती है।
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सूरजमुखी की अच्छी फसल को प्राप्त करने के लिए आपको कुछ इस तरह से बुवाई करनी चाहिए:
सर्वप्रथम आपको सबसे पहले बीज को रात में भिगोकर रखना होगा। भिगोने के बाद आपको करीबन 3 से 4 घंटा बीज को छांव में रखना होगा। शाम होने पर आपको सुखाई हुई बीज को बोना शुरू कर देना चाहिए। सूरजमुखी की फसल के लिए बीज की अलग-अलग मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। इसमें आपको संकुल या सामान्य बीजों की आवश्यकता पड़ती है।फसल की बुवाई के लिए आपको करीबन 12 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टर बीज लेना चाहिए। यदि आपको यह आभास हो जाए। कि बीज में जमाव की गुणवत्ता नहीं है तो आपको ज्यादा से ज्यादा बुवाई के लिए बीज लेनी चाहिए। सूरजमुखी की बुवाई के लिए लगभग 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रतिकिलो ग्राम बीज को शोधित कर लेना चाहिए।
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फसल को कीटनाशक कीटों से सुरक्षा प्रदान करने तथा दीमक से बचाने के लिए कई तरह के रसायनों का प्रयोग किसान फसल की सुरक्षा के लिए करते हैं। किसान फसलों की सुरक्षा के लिए मिथाइल ओडिमेंटान में लगभग 1 लीटर तथा 25ई सी साथ ही साथ फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर के साथ लगभग 800 से 100 लीटर पानी में मिक्स कर फसलों पर छिड़काव करते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा सूरजमुखी फसलों की सुरक्षा कीटों से होती है। इस पोस्ट में हमने सूरजमुखी फसल से जुड़ी विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां आपको दी है। जैसे मई के महीने में किस प्रकार सूरजमुखी फसल की कटाई कैसे करें, जलवायु और भूमि की उपयोगिता, बुवाई तथा सिंचाई आदि की पूर्ण जानकारी, हमारी इस पोस्ट में मौजूद है। यदि आप हमारी दी हुई जानकारी से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं। तो कृपया आप ज्यादा से ज्यादा हमारी इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें।